ट्रेन को सिग्नल मिला। तब पिता ने एक लिफाफा पुत्र को दिया कि बेटा अगर रास्ते
में तुझे डर लगे तो यह लिफाफा खोल कर इसमें जो लिखा उसको पढ़ना । बालक ने पत्र जेब
में रख लिया । माता-पिता ने हाथ हिलाकर विदा किया। ट्रैन चलती रही। हर स्टेशन पर
लोग आते रहे पुराने उतरते रहे । सबके साथ कोई न कोई था । अब बालक को अकेलापन लगा। ट्रेन में अगले स्टेशन पर ऐसी शख्सियत आई जिसका
चेहरा भयानक था। पहली बार बिना माता-पिता के, बिना किसी सहयोगी के ,यात्रा कर रहा था। उसने
अपनी आंखें बंद कर सोने का प्रयास किया परंतु बार-बार वह चेहरा उसकी आंखों के
सामने घूमने लगा। बालक भयभीत हो गया ।
तब उसको पिता की उस चिट्ठी की याद आई। उसने जेब में हाथ डाला। हाथ कांपरहा था। पत्र निकाला । लिफाफा खोला । पढा । पिता ने लिखा था तू डर मत मैं पास वाले कंपार्टमेंट में ही इसी गाड़ी में बैठा हूं । बालक का चेहरा खिल उठा। सब डर काफूर हो गया।
मित्रों, जीवन भी ऐसा ही है ।
जब भगवान ने हमको इस दुनिया में भेजा उस समय उन्होंने हमको भी एक पत्र दिया है ,जिसमें लिखा है , "उदास मत होना ,मैं हर पल, हर क्षण ,हर जगह तुम्हारे साथ हूं । पूरी यात्रा तुम्हारे साथ करता हूं । केवल तुम मुझे स्मरण रखते रहो। सच्चे मन से याद करना, मैं एक पल में आ जाऊंगा। इसलिए चिंता नहीं करना। घबराना नहीं । हताश नहीं होना ।
" चिंता कोपि न कार्या
"
चिंता करने से मानसिक और शारीरिक दोनों स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं । परमात्मा पर ,प्रभु पर, अपने इष्ट पर, हर क्षण विश्वास रखें । वह हमेशा हमारे साथ हैं । हमारी पूरी यात्रा के दौरान.. अन्तिम श्वास तक। प्रभु पर सदैव विश्वास रखें।


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